दानवीर नाम का अर्थ को सार्थक करने वाले दाउ कल्‍याण सिंह

दान की परम्‍परा छत्‍तीसगढ में सदियों से रही है। वैदिक काल में दानवीर राजा मोरध्‍वज की कर्मस्‍थली इस प्रदेश में अनेकों दानवीरों नें जन्‍म लिया है । इन्‍हीं दानवीरों में तरेंगा, भाटापारा में जन्‍में दाउ कल्‍याण सिंह का नाम संपूर्ण प्रदेश में आदर के साथ लिया जाता है । दाउ कल्‍याण सिंह के दान से सुवासित छत्‍तीसगढ के शिक्षा व चिकित्‍सा सेवा के क्षेत्र आज भी पुष्पित व पल्‍लवित हैं । समाज सेवा के अन्‍य क्षेत्रों में भी दाउ कल्‍याण सिंह जी का योगदान सदैव याद रखा जाने वाला रहा है ।

आज रायपुर प्रदेश का प्रशासनिक महकमा जिस छाव तले सुकून से एयरकंडीशनरों की हवा में शासन चला रहा है वह भवन भी दाउ कल्‍याण सिंह के दान में दी गई राशि से बनवाई गई है । छत्‍तीसगढ शासन का मंत्रालय आज जिस भवन में स्‍थापित है वह पहले चिकित्‍सा सुविधाओं से परिपूर्ण भव्‍य डीके हास्‍पीटल हुआ करता था जहां छत्‍तीसगढ के दूर दूर गांव-देहात व शहरों से लोग आकर नि:शुल्‍क चिकित्‍सा सेवा का लाभ उठाते थे जो संपूर्ण छत्‍तीसगढ में एकमात्र आधुनिक चिकित्‍सा का केन्‍द्र था । इस हास्‍पीटल के निर्माण के लिए दाउ कल्‍याण सिंह नें सन् 1944 में एक लाख पच्‍चीस हजार रूपये दान में दिया था । उस समय के उक्‍त राशि का वर्तमान समय के अनुपात में यदि आकलन किया जाए तो वह लगभग सत्‍तर करोड रूपये होते हैं । निर्माण के बाद इस हास्‍पीटल का नाम दाउ कल्‍याण सिंह चिकित्‍सालय रखा गया था। इस चिकित्‍सालय नें छत्‍तीसगढ में अभूतपूर्व चिकित्‍सा सुविधायें उपलब्‍ध कराई, बाद में यह चिकित्‍सालय नये भवन में स्‍थानांतरित हो गया और दाउ कल्‍याण सिंह के द्वारा दिये दान से बनवाये गये इस भवन में छत्‍तीसगढ मंत्रालय स्‍थापित हो गया ।

रायपुर का कृषि विश्‍वविद्यालय भी दाउ कल्‍याण सिंह द्वारा 1784 एकड जमीन दान में देने के बाद ही (पहले कृषि महाविद्यालय फिर कृषि विश्‍वविद्यालय) अस्तित्‍व में आ सका । इसके अतिरिक्‍त दाउ कल्‍याण सिंह नें रायपुर में पुत्री शाला, जगन्‍नाथ मंदिर भाटापारा में पुलिस थाना सहित अनेकों भवनों के लिए भूमि व राशि दान में दिया जिनमें चर्च के लिए भी सहर्ष भूमि दान दिया जाना दाउ जी के सामाजिक सौहाद्र को प्रदर्शित करता है । इनके इन सहयोगों से ही तत्‍कालीन छत्‍तीसगढ में विकास के सोपान लिखे जा सके ।

दाउ कल्‍याण सिंह का जन्‍म 4 अप्रैल को हुआ था, दाउ जी विलक्षण प्रतिभा के धनी व दीन-दुखियों के सेवा में सदैव तत्‍पर रहने वाले मनीषी थे इन्‍होंने कब-कब व कहां-कहां कितना दान दिया इसका उल्‍लेख करें तो कई पन्‍ने रंगनें पडेंगें। छत्‍तीसगढी अग्रवाल समाज दाउ जी के यादों को अक्षुण बनाये रखने के लिए आज के दिन को दानशीलता दिवस के रूप में मनाते हैं ।

स्‍वस्‍थ व संस्‍कारित छत्‍तीसगढ के निर्माण के लिए संपूर्ण जीवन अर्पित कर देने वाले दाउ कल्‍याण सिंह को हम अपना श्रद्वा सुमन अर्पित करते हैं।
4 अप्रैल 1876 को जन्म हुआ दाऊ कल्याण सिंह का। पिता बिसेसरनाथ व माता पार्वती देवी थी। पिता एक छोटे तहुतदार थे। ताहुतदारी को बढ़ाने व राजस्व आय को दृष्टिगत रखते हुए निर्जन स्थानों पर नए गांव बसाकर अपने ताहुतदारी गांवों में वृद्धि की, पर साथ मे कर्ज का बोझ भी बढ़ा लिया। कारोबार ठीक चल ही रहा था कि बिसेसरनाथ की मृत्यु हो गई, सन 1903 जब पिता की मृत्यु हुई दाऊ तब 27 वर्ष के थे। 
अब कथा शुरू होती है हमारे नायक “दाऊ कल्याण सिंह” की। 27 वर्ष की आयु में सारे कारोबार का भार दाऊ के कंधे पर आया और साथ मे आया 2 लाख 12 हज़ार का कर्ज भी। इस कर्ज के एवज में तरेंगा की उनकी संपत्ति जबलपुर के सेठ गोकुलदास के पास गिरवी थी। दाउ की पढाई तरेंगा ग्राम में ही हुई पर प्रबन्ध कौशल किसी शहर वाले से भी तेज था। कारोबार हाथ मे लेते ही अपने सूझ बूझ और प्रबंध कौशल से सारा कर्ज जल्द ही उतार फेका और अपने क्षेत्र में ऐसा विकास किया कि ताहुतदारी की वार्षिक आय तीन लाख तक पहुच गई। कारोबार में बढ़ोतरी अब ऐसी थी कि सन 1937 में “दाऊ कल्याण सिंह” ने 70 हज़ार रुपय से अधिक का राजस्व पटाया। इन आकड़ो से उनका परिश्रम और प्रबंधन कौशल दोनो झलकता है। दाऊ के मुकाबले आज के उद्योगपति कुछ भी नही।
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दाऊ केवल कमाने के लिए मशहूर नही थे, दाऊ प्रेमभाव से अपनी संपत्ति लोगो मे बाटने के लिए भी मशहूर थे। छत्तीसगढ़ के इतिहास में इनसे बड़ा दानी शायद ही आपको कोई और मिलेगा। राज्य का पुराना मंत्रालय भवन याद होगा ना आपको ? घड़ी चौक के समीप जहाँ पहले पूरा प्रशानिक अमला उस भवन की छाव में रहा करता था। छत्‍तीसगढ शासन का मंत्रालय जिस भवन में स्‍थापित था, वह पहले चिकित्‍सा सुविधाओं से परिपूर्ण भव्‍य डीके अस्पताल (दाऊ कल्‍याण सिंह चिकित्सालय) हुआ करता था। अस्पताल के निर्माण के लिए दाउ कल्‍याण सिंह नें सन् 1944 में एक लाख पच्‍चीस हजार रूपये दान में दिया था। उस समय की उस राशि का वर्तमान समय में यदि आकलन किया जाए तो लगभग सत्‍तर करोड रूपये होते है। वह छत्‍तीसगढ में एकमात्र आधुनिक चिकित्‍सा का केन्‍द्र था। प्रदेश के दूर दूर गांव व शहर से लोग निःशुल्क चिकित्सा के लिए इस अस्पताल में आया करते थे। 
दान के रूप में दाऊ के कल्याणकारी कार्यो की लंबी सूची है, रायपुर के लाभांडी में कृषि महाविद्यालय हेतु कृषि प्रायोगिक फार्म के लिये 1729 एकड़ भूमि तथा 1 लाख 12 हज़ार रुपए नगद उन्होंनो दान किया था। रायपुर में ही 323 एकड़ भूमि क्षयग्रस्त रोगियों के आयोग्य धाम निर्माण हेतु दान। रायपुर स्थित एक प्रसूत चिकित्सालय में कई कमरो का निर्माण। रायपुर के पुरानी बस्ती स्थित टुरी हटरी में जग्गनाथ के प्राचीन मंदिर को खैरा नामक पूरा गांव दान में चढ़ा दिया था। ये सारे कुछ ही उदाहरण थे उनकी दानवीरता के। इसलिए दाऊ नही होते तो रायपुर का नक्शा ही कुछ और होता। 
उन्होंने केवल रायपुर ही नही बल्कि प्रदेश व देश के अनेक स्थानों पर अपनी महानता की छाप छोड़ी है, सन 1921 के भयंकर अकाल के समय, पीड़ितों की सहायता के लिए भाटापारा में लाखों रुपय खर्च कर एक बड़े जलाशय का निर्माण करवाया, जिसे आज लोग कल्याण सागर जलाशय के नाम से पहचानते है। भाटापारा में ही उनके द्वारा मवेशी अस्पताल, धर्मशाला तथा पुस्तकालय का निर्माण भी करवाया गया था। दाऊ की उदारता प्रदेश की सीमा में कैद नही रही, नागपुर स्थित लेडी डफरिन अस्पताल तथा सेंट्रल महिला महाविद्यालय का निर्माण नही हो पाता अगर दाऊ कल्याण सिंह प्रचुर मात्रा में दान राशि उपलब्ध ना कराते। बिहार के भूकंप का समय हो या वर्धा में बाढ़ का, या उनके पहुँच वाले क्षेत्र में कोई अकाल इन सभी प्राकृतिक आपदाओं के समय मे दाऊ अपने कोष का मुँह खोल दिया करते थे। 
दाऊ को लोग कट्टर हिन्दू माना करते थे, लेकिन जब दाऊ दान करते, तब दानधर्म ही उनके लिए सबसे बड़ा धर्म बन जाता था, उन्होंने धर्म, जाति, या वर्ण से कभी कोई भेदभाव नही किया। उन्होंने मंदिर, मस्जिद, चर्च सभी के लिए भूमि उपलब्ध कराई। बाजार, कांजीहाउस, शासकीय कार्यालय भवन, स्कूल, गौशाला, शमशान, सड़क, पुस्तकालय, तालाब आदि अनेक कार्यो के लिये न केवल भूमि मुहैया कराई वरन नगद राशि भी दान की। दाऊ के दान के कई किस्से है, सारे किस्से पिरोने बैठे तो ना जाने कितने शब्द ढूढने पड़े। 
दाऊ का छत्तीसगढ़ के लिये जितना प्यार था, हम उन्हें उसका आधा भी नही दे पाए, आज दाऊ को लोग भूल चुके है। ना किसी मंच से उनका नाम सुनाई देता है, ना कोई उनकी कहानिया सुनता है। बाहरी किस्सों की भीड़ में अपने नायक के किस्से लोगो को पता ही नही। किस्से कहानियों में ही नही तस्वीरों में भी गुम हो चुके है दाऊ। ऐसी कहानियो को वापस खोजने की ज़रूरत है जो अब खो चुकी है।

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